हिन्दी में हैं रोजगार की अपार संभावनाएं और उज्ज्वल भविष्य

कोई भाषा कितनी वैज्ञानिक है अथवा उसके पास कितना शब्द भण्डार है, उससे भी ज्यादा महत्त्वपूर्ण है, उस भाषा में निहित ज्ञान । किसी भी भाषा की सम्पन्नता उस भाषा में निहित ज्ञान से ही है, न कि उसके बोलने वालों की संख्या से । यदि भाषा की सम्पन्नता का सूचक लिपि की वैज्ञानिकता, शब्द भण्डार, व्याकरण और बोलने वाले जनसमूहों का जनाधार होता तो हिन्दी का स्थान अग्रपंक्ति में होता ।

इसका आशय यह नहीं है कि हिन्दी में ज्ञान की कमी है । हिन्दी भाषा में अथाह ज्ञान होते हुए भी उसे समाज से धीरे-धीरे विस्थापित किया जाता रहा है और उसके स्थान पर अंग्रेजी को एक समृद्ध एवं प्रभावशाली भाषा के रूप में स्थापित किया गया है । भारतीय परिप्रेक्ष्य में अंग्रेजी भाषा को एक अतिरिक्त कौशल के रूप में देखा जाता है ।

भारतीय समाज में अंग्रेजी को मेधा और प्रतिभा से जोड़ दिया गया है । जिसे अंग्रेजी भाषा का ज्ञान हो उसे बौद्धिक माना जाने लगा । अंग्रेजी बोलने वाले को प्रकाण्ड विद्वान के रूप में देखा जाने लगा । समाज के हर वर्ग तक इस धारणा को स्थापित किया गया कि अंग्रेजी ही प्रतिष्ठा और सम्पन्नता की निशानी है ।

सामान्य रूप से सतही तौर पर यह धारणा सही लगती हो, किन्तु इसकी गहराई में जाएँ तो यह अनर्थक प्रतीत होती है । एक सामान्य नागरिक के पास भी भाषा कौशल होना आवश्यक है । यदि आप एक से अधिक भाषाएँ जानते हों तो यह आपके व्यक्तित्व निर्माण में सहायक होती है ।

भाषा चाहे कोई भी हो, उसमें इतना सामर्थ्य नहीं होता कि वो किसी व्यक्ति को प्रतिभा सम्पन्न बना सके, बल्कि भाषा में निहित ज्ञान ही व्यक्ति के विचारों को प्रभावित करता है । इसी तरह किसी भी भाषा को बोल लेने मात्र से कोई विद्वान नहीं बनता । यदि ऐसा होता तो अमेरिका के गलियों में झाड़ू लगाने वाले भी सभी विद्वान की श्रेणी में आते ।

वहाँ तो कारखानों में काम करने वाले श्रमिक एवं मजदूर भी अच्छी अंग्रेजी बोलते हैं, क्या इससे वे सभ्य व ज्ञानी मान लिए जाते हैं ? क्या फ्रांस में फ्रेंच बोलने वाले सभी नागरिक प्रतिभाशाली हैं ? क्या जर्मन में सभी बौद्धिक व्यक्ति होते हैं ? मूल अर्थ यह है कि बोलना आना ही किसी भी भाषा की विद्वता नहीं है ।

भाषा शिक्षण के अनिवार्य तत्व हैं – लिखना, पढ़ना, बोलना और समझना । जब तक इन चारों तत्वों का समिश्रण नहीं हो जाता तब तक किसी भी व्यक्ति का भाषा शिक्षण अपूर्ण ही रहता है ।

सामान्यतया किसी भी भाषा को छह महीने में सीखा जा सकता है । जापान, कोरिया जैसे विकसित देशों में वीजा लेने के लिए छह महीने का कोर्स करना अनिवार्य होता है । विचारणीय यह है कि जब किसी भी भाषा को छह महीने में सीखा जा सकता है, तो हमारी शिक्षा प्रणाली में ऐसी व्यवस्था क्यों है कि बच्चों को नर्सरी से ही अंग्रेजी का तनाव सहना पड़ता है ?

अंग्रेजी एक अंतर्राष्ट्रीय भाषा है और आज के समय में इसकी महत्ता को नकारा नहीं जा सकता, किन्तु अंग्रेजी के बलबूते ही विकास के कार्य हो सकते हैं अथवा देश निर्माण के सभी पूर्वाधार अंग्रेजी में ही सिद्ध होते हैं, ऐसा कतई नहीं है । विश्व के जितने भी विकसित अर्थव्यवस्थाएं हैं, वे अपनी भाषा में ही सभी कार्य करतीं हैं ।

चीन, जापान, रूस, इजराइल, फ्रांस, कोरिया आदि इसके उदाहरण हैं, जिन्होंने अपनी भाषा के दम पर आज विश्व कीर्तिमान स्थापित किए हुए हैं । विश्व के अनेकों शोधों में यह पाया गया है कि बच्चों को उसकी मातृभाषा में शिक्षा देना शिक्षा का सबसे सुलभ और सरल माध्यम है ।

बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए बच्चों को उसकी मातृभाषा में शिक्षा दी जानी चाहिए । हम विश्व की किसी भी भाषा में बोल सकते हैं, पढ़ सकते हैं, लिख सकते हैं किन्तु उस भाषा में कतई सोच नहीं सकते ।

हम अपनी संवेदनाओं और भावनाओं को अपनी मातृभाषा में ही स्पष्ट रूप से व्यक्त कर पाते हैं । मनुष्य का चिंतन और रचनात्मकता उसकी मातृभाषा में ही सम्पन्न होती है ।

अक्सर यह भ्रम भी फैलाया जाता है कि हिन्दी में रोजगार नहीं है अथवा हिन्दी में पढ़ने से भविष्य सुरक्षित नहीं है । हिन्दी में रोजगार की असीम संभावनाएं है । 2022 बैच के सिविल सेवा परीक्षा (यूपीएससी) में हिन्दी माध्यम से 54 छात्रों का चयन होना यह बताता है कि हिन्दी में उज्ज्वल भविष्य है ।

यूपीएससी के इतिहास में यह हिन्दी का सबसे उत्कृष्ट प्रदर्शन है । विशेष बात यह है कि 54 छात्रों में से 29 छात्रों ने वैकल्पिक विषय के रूप में हिन्दी साहित्य को चुना था । 2021 के बैच में हिन्दी माध्यम से 24 छात्रों का चयन हुआ था । इससे यह ज्ञात होता है कि हिन्दी का ग्राफ बढ़ रहा है ।

आने वाले समय में स्थिति में और सुधार होगा और समाज में हिन्दी को लेकर जागृति बढ़ेगी । हिन्दुस्तानी भाषा अकादमी की ओर से सिविल सेवा में सफल होने वाले समस्त छात्रों को हार्दिक बधाई और उन सभी बच्चों को शुभकामनाएँ जो भारतीय भाषाओं को केंद्र में रख कर अपनी प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं । हम उन सभी बच्चों के उज्ज्वल भविष्य की कामना करते हैं ।

सुधाकर पाठक – अध्यक्ष, हिन्दुस्तानी भाषा अकादमी

न्यूजलेटर

हमारे नए प्रकाशन और अपडेट्स की जानकारी के लिए

You have been successfully Subscribed! Ops! Something went wrong, please try again.

© 2024 सुधाकर पाठक

Total Visitors

0 0 0 0 8 0