भारतीय भाषा दिवस भाषाई सौहार्द के माध्यम से राष्ट्रीय एकीकरण का उत्सव है

मनोविज्ञान का सिद्धान्त यह कहता है कि यदि आपको किसी के हृदय में अपनी जगह बनानी हो अथवा किसी व्यक्ति को गहराई से जानना-समझना हो, तो उसकी मातृभाषा में बात करिए । प्रत्येक मनुष्य अपनी मातृभाषा से भावनात्मक रूप से जुड़ा होता है ।

यह भावनात्मक जुड़ाव मनुष्य के मस्तिष्क में इतनी गहरी पैठ बना चुकी होती है, कि मनुष्य अपनी भाषा से पृथक रहकर किसी अन्य भाषा में नवीन कल्पना कर ही नहीं सकता । यदि कोई मनुष्य अपनी भाषा को छोड़कर किसी अन्य भाषा में संवाद स्थापित कर रहा है, तो उसमें उसकी मौलिकता नहीं है, अपितु वो उसके मस्तिष्क द्वारा किया गया अनुवाद मात्र है ।

यह अनुवाद इतनी तीव्र गति से होता है कि बोलने वाले को भी स्वयं महसूस नहीं होता । विज्ञान भी यह मानता है कि मनुष्य के मस्तिष्क में जिस भाषा में चीज़ें, वस्तुएँ, विचार, चिंतन, रंग, चित्र, ध्वनि, स्वाद, सुगन्ध, प्रेम, करुणा, ईर्ष्या, स्वप्न आदि कोडिंग होती है वो उसकी मातृभाषा में होती है ।

आप विश्व के अनेक भाषा में बोलिए, किन्तु जो सहजता आपको अपनी भाषा में मिलती है वो अन्य भाषा में नहीं मिल सकती । किसी भी व्यक्ति की मौलिकता केवल उसकी मातृभाषा में ही झलकती है । यही कारण है कि मनुष्य अपनी भाषा के प्रति अति संवेदनशील होता है ।

जहाँ कहीं भी उसकी भाषाई अस्मिता की बात आती है तो वो उद्धेलित होता है । यह भाषाई अस्मिता ही क्षेत्रवाद का रूप लेती है । क्षेत्रवाद की भावना शक्ति का एक रूप है, किन्तु जब हावी होती है तो यह राष्ट्रवाद की भावना को बहुत तेजी से खोखला करना शुरू कर देती है ।

यहीं से एक ही राष्ट्र में रहने वाले नागरिकों के बीच वैमनस्य अपनी जगह बना लेती है जो आपसी सौहार्द और भाईचारा को दो भिन्न भाषा, संस्कृति, साहित्य और कला के बीच रमने वाले लोगों के बीच पनपने नहीं देती । क्षेत्रवाद की अवधारणा सदैव नकारात्मक ही होती है, ऐसा कतई नहीं है । हरेक क्षेत्र की अपनी एक पहचान होती है ।

हरेक क्षेत्र की अपनी भिन्न भाषा, संस्कृति, साहित्य, परम्परा, वेशभूषा, रहन-सहन, खान-पान, कला, संगीत, आस्था और धार्मिक मान्यता होती है । यह सभी आर्थिक पक्ष, सामाजिक संरचना, धार्मिक मूल्य-मान्यताएँ और सांस्कृतिक सम्पदा ही किसी राज्य की विरासत होती है ।

राज्य में निवास करने वाला प्रत्येक व्यक्ति अपने क्षेत्र की कला, संस्कृति और भाषा के उत्थान के लिए कर्तव्यनिष्ठ है । किन्तु हमारा उद्देश्य क्षेत्रीय अस्मिता की रक्षा के साथ-साथ राष्ट्रीय विकास और एकता को स्थापित करना होना चाहिए । यही एक नागरिक की राष्टवाद की भावना है ।

भारत एक संविधान सम्मत राष्ट्र है । भारतीय संविधान भारत के किसी भी भू-भाग में रहने वाले नागरिक की जाति, धर्म, पन्थ, भाषा, कला और संस्कृति का सम्मान करती है । संविधान में सभी नागरिकों के लिए समान मौलिक अधिकार, मौलिक कर्तव्य और न्याय व्यवस्था निर्दिष्ट है ।

भारतीय संविधान 22 भागों में वर्गीकृत है जिसमें 395 मुख्य अनुच्छेद तथा 12 अनुसूचियां हैं । संविधान का अनुच्छेद 343 से 351 राजभाषा हिन्दी से सम्बन्धित है तथा आठवीं अनुसूची में 22 भारतीय आधिकारिक भाषाओं का उल्लेख है । संविधान में निर्दिष्ट भाषाओं के अतिरिक्त भी भारत में कई भाषाएँ, उपभाषाएँ एवं बोलियाँ बोली जाती हैं ।

यह भाषाई विविधता ही भारत की अप्रतिम सुन्दरता है । कोई भी भाषा कदाचित अकेली नहीं होती, अपितु उसके साथ-साथ उस भाषा में विद्यमान संस्कृति और साहित्य भी प्रवाहित होती है । किसी भी भाषा का अस्तित्व उसके बोलने वाले लोगों के आचरण पर टिका होता है ।

जब तक समाज में भाषा प्रयुक्त होती रहेगी और उसका अगली पीढ़ी में हस्तांतरण होता रहेगा तब तक भाषा जिन्दा रहेगी । यदि भाषा का हस्तांतरण रुक जाता है या कम हो जाता है, तो उस भाषा के अस्तित्व पर संकट मंडराने लगता है । मनुष्य के जीवन में भाषा की बहुत बड़ी भूमिका होती है ।

भाषा ने मनुष्य के जीवन को बहुत सरल और व्यवस्थित बनाया है । यदि भाषा ही न होती तो मनुष्य आज प्रगति के इतने उत्कर्ष शिखर तक पहुँच ही नहीं पाता । यह भाषा की ही देन है कि उसने मनुष्य के जीवन को इतना सरल बना दिया है, नहीं तो मनुष्य आज इतनी उचाइयों पर कहाँ होता ?

इतने आविष्कार, खोज-अनुसंधान, सूचना प्रवाह, संचार संसाधन, उद्योग, व्यवसाय, विश्वविद्यालय, पुस्तकालय आदि का निर्माण कैसे होता ? कैसे रखा जाता वस्तु विनिमय और क्रय-विक्रय का हिसाब ? कैसे रखा जाता इतिहास के दस्तावेजों को सुरक्षित ? विविध संस्कृति और सभ्यता का प्रचार-प्रसार कैसे होता ?

विभिन्न कालखंड के विशाल साहित्य के अस्तित्व का क्या होता ? हमारे विचारों को सक्रिय बनाने में भाषा का बहुत बड़ा योगदान है । भाषा के लिखित और मौखिक रूप के कारण हम अपनी संवेदना, सहानुभूति, आकांक्षा, चिंतन, प्रेम और भाव को दूसरों के हृदय तक संप्रेषित कर पाते हैं ।

भाषा का अस्तित्व सिर्फ भाव सम्प्रेषण तक ही सीमित नहीं है, अपितु आज के भूमंडलीकरण, वैज्ञानिक और सूचना क्रांति के समय में राष्ट्रीय अस्मिता से भी है ।

हमारे पास भाषा का बहुत संकुचित दायरा है । असल में हमने भाषा के महत्त्व को समझा ही नहीं है । किसी भी भाषा के विलुप्त होने से उसके स्थान पर उसकी ही कोई परिष्कृत नई भाषा का जन्म नहीं होता ,बल्कि उसे विस्थापित करने वाली वर्चस्ववादी भाषा अपना दबदबा बना लेती है ।

विश्व में कई भाषाएँ विलुप्त हो चुकी हैं, कई विलुप्त होने की स्थिति में है । भारतीय लोक भाषा सर्वेक्षण के अनुसार विश्व की 6000 भाषाओं में से 4000 भाषाएँ विलुप्त होने की स्थिति में हैं जिनमें 10 प्रतिशत भाषाएँ भारत की हैं । यूनेस्को द्वारा तैयार एक सूची के अनुसार भारत की 42 भाषाएँ एवं बोलियाँ इस समय विलुप्त होने की स्थिति में हैं ।

केन्द्रीय गृह मंत्रालय के अनुसार 10000 से भी कम लोगों द्वारा बोली जाने वाली भाषा को लुप्तप्राय माना गया है । इस श्रेणी में पश्चिम बंगाल, अंडमान-निकोबार, असम, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, झारखण्ड, कर्णाटक, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, महारष्ट्र आदि राज्यों की क्षेत्रीय भाषाएँ सम्मिलित हैं ।

यूनेस्को के अनुसार अंडमान में जारवा भाषा बोलने वालों की संख्या 31 है तो ग्रेट अंडमानीज बोलने वालों की संख्या 5 है । मातृभाषा को संस्कृति का जड़ माना जाता है, किन्तु तेजी से हो रही आर्थिक विकास ने इन क्षेत्रीय भाषओं को तहस-नहस भी किया है । अपनी भाषाओं को बचाने के लिए हमारे पास बहुत थोड़ा सा ही समय बचा है ।

यदि समय रहते हमने इनको संरक्षित नहीं किया तो यह बची-खुची भाषाएँ और बोलियाँ भी समाप्त हो जाएँगी । यह सत्य है कि डिजिटल युग में उन्हीं देशों की भाषाएँ बची रहेंगी जो आर्थिक, राजनीतिक और सामरिक रूप से मजबूत हैं । भारत विश्व में पाँचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और जनसंख्या की दृष्टि से भी बहुत विशाल है ।

इसे आधार मानकर हम ज्यादा दिन खुश नहीं रह सकते, क्योंकि हमारी वास्तविकता कुछ और है । हमारी युवा पीढ़ी अपनी मातृभाषाओं से विमुख हो रही है और यह प्रक्रिया बहुत तेजी से अपना काम कर रही है । अधिकांश परिवार में केवल पहली और दूसरी पीढ़ी ही अपनी मातृभाषा में बोलते हैं; तीसरी पीढ़ी तक मातृभाषा का हस्तांतरण नहीं हो रहा है ।

यदि कहीं हो भी रहा है तो आगे चलकर उसकी गति रुक जाती है । अंग्रेजी को रोजगार का एक मात्र माध्यम बनाने से तथा ज्ञान-विज्ञान, वैज्ञानिक एवं तकनीकी शिक्षा को भारतीय भाषाओं में रूपान्तरित न करने से भारतीय भाषाएँ पिछड़ती चली गईं ।

हमारा पारिवारिक, सामाजिक, शैक्षिक, साहित्यिक और औद्योगिक वातावरण भी इस तरह से तैयार हो चुका है कि जिसे अंग्रेजी आती है उसे ही विद्वान और प्रतिभाशाली समझा जाता है । भारतीय समाज में अंग्रेजी को एक अतिरिक्त कौशल के रूप में लिया जाता है । भूमण्डलीकरण के समय में अंग्रेजी अवश्य एक प्रभावशाली अंतर्राष्ट्रीय भाषा है और उसके महत्त्व को सीधे-सीधे नकारा भी नहीं जा सकता ।

वैश्विक भाषा के रूप में अंग्रेजी भाषा का ज्ञान होना आवश्यक है, किन्तु अनिवार्य नहीं है । अंग्रेजी भाषा का ज्ञान होना और अंग्रेजी मानसिकता को ढोना दोनों में बहुत अंतर है । हमें भारतीय भाषाओं के उन्नयन के लिए सबसे पहले अंग्रेजी मानसिकता से बचना होगा ।

भारत भाषाओं की उर्वर भूमि है । यहाँ 123 आधिकारिक भाषाएँ बोली जाती हैं । इसके अतिरिक्त भी यहाँ 1600 से अधिक उपभाषाएँ और बोलियाँ बोली जाती हैं । प्रत्येक भाषा की अपनी व्यवस्थित वर्णमाला, लिपि, व्याकरण और शब्द भण्डार है । प्रत्येक भाषा की अपनी समृद्ध साहित्य परम्परा है ।

यह भाषिक, साहित्यिक और सांस्कृतिक सम्पदा ही भारत की वास्तविक पहचान है । सभी भारतीय भाषाओं के संरक्षण और प्रचार-प्रसार के उद्देश्य से राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 में प्राथमिक स्तर से मातृभाषा शिक्षा पर जोर दिया गया है । मातृभाषाओं के प्रचार-प्रसार एवं उन्नयन के साथ-साथ राष्ट्रीय शिक्षा नीति इस बात की भी पहल करती है कि देश के छात्रों को ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ के अंतर्गत रोचक गतिविधियों एवं परियोजनाओं के माध्यम से भारतीय भाषाओं का ज्ञान भी दिया जाए ।

छात्रों को भारतीय भाषाओं की जानकारी देने, अन्य भारतीय भाषाएँ सीखने के लिए प्रोत्साहित करने और भारतीय भाषाओं के माध्यम से राष्ट्रीय एकता को मजबूती देने के उद्देश्य से शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार ने पिछले वर्ष 2022 में भारतीय भाषाओं के महत्त्व पर जोर देने के लिए गठित भारतीय भाषा समिति की सिफारिशों के बाद प्रत्येक वर्ष 11 दिसम्बर को ‘भारतीय भाषा दिवस’ के रूप में मनाए जाने की घोषणा की थी ।

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने देश के सभी उच्च शिक्षण संस्थानों को चिठ्ठी लिखकर निर्देश दिया था कि उत्तर-दक्षिण के सेतु के नाम से प्रसिद्ध महाकवि सुब्रह्मण्य भारती की जयंती के अवसर पर स्कूलों और कॉलेजों में 11 दिसम्बर को भारतीय भाषा दिवस मनाया जाएगा ।

सुब्रमण्यम भारती ने स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान देशभक्ति को प्रोत्साहित करने के लिए अनेक गीत लिखे थे । चिन्नास्वामी सुब्रमण्यम भारती जी सुप्रसिद्ध लेखक, कवि, पत्रकार, भारतीय स्वतंत्रता सेनानी एवं तमिलनाडु के समाज सुधारक थे । उनकी प्रारम्भिक शिक्षा तमिलनाडु और वाराणसी में हुई थी ।

राष्ट्रीय एकता और सद्भाव को बढ़ाने में उनके अतुलनीय योगदान को रेखांकित करते हुए भारत सरकार ने उनकी जयंती को ‘भारतीय भाषा दिवस’ या ‘भारतीय भाषा उत्सव’ के रूप में राष्ट्रव्यापी रूप में मनाए जाने की घोषणा की थी । इसके साथ ही केन्द्र सरकार भारतीय भाषाओं को बढ़ावा देने के लिए 22 भाषा केन्द्र भी स्थापित करेगी ।

इस दिवस का उद्देश्य भाषा सद्भाव का उत्सव मनाना और भारतीय भाषाओं को बढ़ावा देना है । छात्रों एवं शोधार्थियों को अपनी मातृभाषा के अतिरिक्त अन्य भारतीय भाषाओं को सीखने के लिए अनुकूल वातावरण तैयार कर उन्हें भारतीय संस्कृति को बृहत रूप में समझने के लिए नए मार्ग का निर्माण करना है ।

हम जितनी भाषाएँ सिखेंगे उतना ही हमारा सोचने-समझने का दायरा बढ़ेगा । भाषाएँ हमें जोड़ती हैं, गढ़ती हैं और हमें सहेजती हैं । अन्य भारतीय भाषाओं को सीखने से हम अपने आप को समृद्ध कर रहे होते हैं । इससे हम अधिक-से-अधिक समुदायों के विचार, कला, रचनात्मकता, इतिहास, साहित्य और संस्कृति को उनकी मौलिकता में समझ रहे होते हैं ।

मौलिकता मातृभाषा में ही निहित होती है । अनुवाद एक विकल्प अवश्य है, किन्तु अनुवाद का अपना सिमित दायरा है । मूलभाषा में जो भाव संप्रेषित होती है वो शत प्रतिशत अनुवाद में नहीं उतर सकती । यहाँ ध्यान देने योग्य बात यह है कि अपनी मातृभाषा के अतिरिक्त अन्य मातृभाषा को जब हम सीख रहे होते हैं, तो हम अपने परिवेश से बाहर के करोड़ों हृदय से जुड़ रहे होते हैं । यह जुड़ाव हमारे आपसी सम्बन्धों को और अधिक मजबूत करता है ।

इस अर्थ में देखा जाए तो भारतीय भाषा दिवस राष्ट्रीय एकीकरण का उत्सव है । जब हमारे भीतर सभी भाषाओं को साथ लेकर बढ़ने का संकल्प जन्म लेगा, सभी भाषाओं के प्रति सम्मान बढ़ेगा तो इससे बेहतर भाईचारा कुछ नहीं हो सकता ।

‘भारतीय भाषा उत्सव’ के इस द्वितीय संस्करण में हिन्दुस्तानी भाषा अकादमी, इन्दिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केन्द्र, संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार के साथ मिलकर संयुक्त रूप में भव्यता के साथ ‘भारतीय भाषा दिवस’ का आयोजन कर रही है ।

इस अवसर पर ‘मेधावी छात्र एवं शिक्षक सम्मान समारोह’ योजना के अंतर्गत 10 वीं कक्षा की बोर्ड परीक्षा में भारतीय भाषाओं में 90 प्रतिशत या इससे अधिक अंक प्राप्त करने वाले छात्रों को ‘भाषा दूत सम्मान’, शत प्रतिशत (100%) अंक प्राप्त करने वाले छात्रों को ‘भाषा रत्न सम्मान’ एवं उन्हें पढ़ाने वाले शिक्षकों को ‘भाषा गौरव शिक्षक सम्मान’ से सम्मानित किया जाएगा ।

मेधावी छात्र एवं शिक्षक सम्मान समारोह हिन्दुस्तानी भाषा अकादमी की महत्त्वपूर्ण वार्षिक सम्मान योजना है । यह सम्मान योजना दिल्ली प्रदेश के अतिरिक्त गुरुग्राम और गाज़ियाबाद में भी पिछले 7 वर्षों से आयोजित होती आ रही है ।

इस वर्ष सम्मान समारोह में दिल्ली प्रदेश के प्रतिष्ठित 212 विद्यालयों के 6194 मेधावी छात्रों के साथ-साथ 9 भारतीय भाषाओं (हिन्दी, संस्कृत, पंजाबी, बंगाली, तेलुगु, तमिल, गुजराती, सिन्धी और उर्दू) के 605 शिक्षकों को सम्मानित किया जाएगा ।

इस सूची में 80 बच्चे ऐसे हैं जिन्होंने भारतीय भाषाओं में शत प्रतिशत अंक प्राप्त किए हैं । इसी तरह गुरुग्राम, हरियाणा के 56 विद्यालयों के 1816 मेधावी छात्र, जिनमें 75 बच्चों ने शत प्रतिशत अंक प्राप्त किए हैं, उनके साथ 128 शिक्षक भी सम्मिलित होंगे । आइए, इस भारतीय भाषा उत्सव में सहभागी होकर हम सब भारतीय भाषाओं के उन्नयन में अपना अमूल्य योगदान दें ।

 इति शुभम् ।

सुधाकर पाठक – अध्यक्ष, हिन्दुस्तानी भाषा अकादमी

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