संस्कार सृजन शाला

प्रस्तावना :

बचपन छोटा होता है किन्तु अमूल्य होता है । बचपन आने वाले कल का दर्पण होता है । बचपन में जो संस्कार बच्चा प्राप्त करता है वही उसके सर्वांगीण व्यक्तित्व का निर्माण करते हैं । संस्कार लोक व्यावहार का अंग है जो समाज में व्यक्ति को संयमित, संतुलित और सम्यक रूप से जीवन निर्वाह के गुण सिखाता है । बच्चे देश के कर्णधार होते हैं । देश का भविष्य बच्चों के नन्हें हाथों में अंकुरित होता है । एक समृद्धशाली देश के निर्माण में बच्चों का संस्कारित होना अत्यावश्यक है । एक गौरवशाली और सशक्त देश की परिकल्पना में बचपन की अवहेलना नहीं की जा सकती । इस आयु वर्ग के बच्चों में ग्रहण करने और सीखने की असाधारण क्षमता होती है । अच्छे संस्कार में पला-बढ़ा बच्चा जीवन के विषम परिस्थितियों में भी सत्मार्ग और न्याय को ही चुनता है । भौतिक सुविधाओं को भोगने की लालसा से परे वो समाजोत्थान और देशभक्ति को समर्पित होता है । मुख्य रूप से यह कार्यशाला शिक्षकों को केन्द्र में रखकर संचालित किया जाएगा । इस कार्यशाला के माध्यम से विद्यालयी स्तर के बच्चों को नैतिक मूल्यों से जोड़कर उन्हें देश निर्माण के लिए तैयार किया जाएगा ।

परिकल्पना :

आधुनिकीकरण और भौतिकवाद के चलते वर्तमान समय में परिवार का दायरा सिमट गया है । जब से समाज में एकल परिवार की अवधारणा ने अपनी पैठ बनाई है, उससे बच्चों में संस्कार का हस्तांतरण लगभग रुक सा गया है । पहले संयुक्त परिवार में बच्चे बचपन से ही अनुशासन, रिश्तों की मर्यादा, मान-सम्मान, धैर्य, शालीनता, शिष्टाचार और चरित्र निर्माण जैसे नैतिक मूल्यों की शिक्षा अपने दादा-दादी, चाचा-चाची, ताओ-ताई, घर के बड़े-बुजुर्गों आदि से सिखते थे, अब वो परम्परा नहीं रही । महंगाई की मार इतनी है कि एक छोटे से परिवार के भरण-पोषण के लिए पति-पत्नी दोनों को काम करना पड़ रहा है । माँ के द्वारा जो संस्कार बच्चों को दिया जाता था, अब वो भी समाप्त होती जा रही है । इसका सबसे बड़ा प्रभाव बच्चों पर पड़ रहा है । एक तो संयुक्त परिवार के टूटने से पहले से ही बच्चे बड़े-बुजुर्गों के सानिध्य से दूर हो गए, दूसरे माँ-बाप दोनों नौकरी-पेशा में होने से वे उनके साथ भी ज्यादा समय नहीं बिता पाते । मनोवैज्ञानिक रूप से भी बच्चों में इसका बहुत गहरा असर पड़ता है । ऐसी स्थिति में बच्चों में नैतिक मूल्यों का सृजन और संस्कार के हस्तांतरण की महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारी शिक्षकों के कंधों पर आती है । बच्चे अपनी दिनचर्या का सबसे अधिक समय अपने शिक्षकों के साथ व्यतीत करते हैं । बच्चों के व्यावहारिक और मानसिक विकास में शिक्षकों के आचरण और व्यक्तित्व की बहुत बड़ी भूमिका होती है । यह वो संवेदनशील समय होता है जब बच्चे अपने शिक्षकों को देखकर, सुनकर सिखते हैं और उनसे प्रभावित होकर उनकी तरह नैतिकवान बनने का अनुसरण करते हैं । बाज़ारवाद के इस युग में प्रत्येक वस्तु का एक मूल्य है । प्रत्येक वस्तु को निश्चित मूल्य में ख़रीदा और बेचा जा सकता है । संस्कार जीवन जीने का एक ऐसा आदर्श है, जिसका कोई मोल नहीं है । संस्कार क्रय-विक्रय का साधन नहीं है । संस्कार संस्कृति का एक अभिन्न अंग है ।

‘हिन्दुस्तानी भाषा अकादमी’ भारतीय भाषाओं के संरक्षण, संवर्धन और प्रचार-प्रसार को समर्पित एक स्ववित्तपोषित संस्था है । अपने स्थापना काल से ही अकादमी जमीनी स्तर पर उद्देश्यपरक कार्य कर रही है । अकादमी साहित्य, कला, शिक्षा और भाषा के क्षेत्र में सतत् रूप से सक्रिय है । भारतीय भाषाओं का संरक्षण, संवर्धन और प्रचार-प्रसार करना ही ‘हिन्दुस्तानी भाषा अकादमी’ का दृढ संकल्प है । इसके साथ ही अकादमी भारतीय संस्कृति, साहित्य और लोक कलाओं के संरक्षण के लिए भी प्रतिबद्ध है । समाज की वर्तमान स्थिति और बाल मनोविज्ञान को ध्यान में रखते हुए ‘हिन्दुस्तानी भाषा अकादमी’ ने अपने सामाजिक दायित्व और नैतिक जिम्मेदारी के रूप में इस कार्यशाला की परिकल्पना की है । मूलतः यह कार्यशाला शिक्षकों के व्यक्तित्व निर्माण के लिए तीन दिवस क्रियान्वित की जाएँगी जहाँ उन्हें एक आदर्श शिक्षक, आदर्श शिक्षक की नीतियाँ, समाज में शिक्षक होने का अर्थ और उनकी जिम्मेदारी, बाल संस्कार, बच्चों का चरित्र निर्माण, सशक्त समाज और उन्नत देश के निर्माण में शिक्षकों की भूमिका आदि जैसे विषयों पर अंतरक्रियात्मक और बहुआयमिक शैली से जोड़ा जाएगा । कार्यशाला में शिक्षक जो सिखेंगे सबसे पहले उसे अपने आचरण में उतारेंगे फिर अपनी कक्षा में अपने दैनिक पीरियड में बच्चों पर प्रयोग करेंगे । इससे शिक्षकों को अतिरिक्त समय देने की आवश्यकता भी नहीं होगी और बच्चों को भी पढ़ाई बोझ न होकर खेल और मनोरंजन का एक माध्यम बनेगा ।

कार्यशाला के उद्देश्य :

बच्चे आने वाले कल की तस्वीर होते हैं । आने वाले समय में देश की स्थिति कैसी होगी ? देश की शिक्षा नीति, आर्थिक नीति, सामाजिक व्यवस्था, न्याय प्रणाली, सुरक्षा संसाधन, स्वास्थ्य सेवा जैसे विकास और निर्माण कार्यों की दशा और दिशा क्या होगी ? यह सभी बातें बच्चों को दिए जाने वाले संस्कार पर निर्भर करता है । संस्कार हमारे व्यावहार का हिस्सा होते हैं । संस्कार ही हमारे विचारों को प्रभावित करती है । हमारा उठना-बैठना, चलना-फिरना, बोलना, शब्दों को बरतना, खाने-पीने का तौर-तरीका, कपड़ों का चयन और पहनने का ढंग के साथ-साथ हमारी अनेक भाव-भंगिमाएँ हमारे संस्कार का एक छोटा अंश भर होता है । इन अवयवों के आधार पर बाहरी रूप में किसी व्यक्ति को परखा तो जा सकता है कि वो कितना भद्र और सभ्य होगा, किन्तु वही व्यक्ति कितना सदाचार, सामाजिक, निष्ठावान, कर्तव्यपरायण, अनुशासनप्रिय, सत्यनिष्ठ और न्यायप्रेमी होगा उसके लिए उसकी नैतिकता को देखा-परखा जाता है । संस्कार के रूप में प्राप्त नैतिक मूल्य ही हमारी सोच, विचारधारा और सिद्धांतों का निर्माण करते हैं । किसी व्यक्ति की पहचान उसके संस्कार से होती है । 

इस परियोजना के मुख्य उद्देश्य :

1.गुरु-शिष्य परम्परा को पुनर्स्थापित करना और शिक्षकों को शिक्षक होने की गर्वानुभूति कराना ।

2.शिक्षकों के माध्यम से बच्चों में नैतिक मूल्यों का सृजन और चरित्र निर्माण करना ।

3.बच्चों को संस्कार से जोड़कर संवेदनशील नागरिक बनने और समाजोत्थान के लिए प्रेरित करना ।

4.शिक्षित समाज के साथ-साथ एक संस्कारित और शिष्ट समाज का निर्माण करना ।

5.शिक्षक, विद्यार्थी और अभिभावक के बीच संवाद सेतु स्थापित करना ।

6.बच्चों में स्व: अनुशासन, सामाजिक सद्भाव, देश प्रेम और राष्ट्रबोध की भावना को जागृत करना ।

7.बच्चों में मौलिक चिंतन और आलोचनात्मक चेत का विकास करना ।

8.शिक्षा व्यवस्था में विषयगत ज्ञान के साथ-साथ व्यावहारिक ज्ञान को अभिप्रेरित करना ।

9.वैश्विक शिक्षा के साथ भारतीय ज्ञान परम्परा, संस्कृति और दर्शन का विस्तार करना ।

10.समाज में ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’ और ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ की भावना को बनाए रखना ।


कार्यशाला के कुछ मुख्य बिंदु :

  • कथा कथन – 
    बच्चों में नैतिक शिक्षा के बीज बोने के लिए कथा कथन एक प्रभावी माध्यम है । इतिहास के नायकों और देशभक्ति की कहानियाँ सुनना बच्चों का प्रिय विषय है और यह श्रुति परम्परा का सबसे सशक्त संसाधन है अत: कथा-कहानी के माध्यम से बच्चे जीवन मूल्यों की शिक्षा सबसे जल्दी सीख पाते हैं । हमारे धर्मग्रंथों तथा इतिहास से प्रह्लाद, ध्रुव, लव-कुश, श्रवण कुमार जैसे पौराणिक कहानियाँ बच्चों के मस्तिष्क में अमिट छाप छोड़ती हैं । ऐसी कहानियाँ बच्चों को आदर्शवादी और सच्चरित्रवान बनने को प्रेरित करते हैं । देश के स्वतंतत्रा सेनानियों के वीरगाथाओं से बच्चों में देशप्रेम की भावना जागृत होती है ।
  • प्रश्नोत्तरी- 
    बच्चे जिज्ञासा और कौतुहल से भरे हुए होते हैं और उनमें नई बातों को सीखने की बहुत उत्कंठा होती है । शिक्षा प्रभावी ढंग से दी जा सके इसके लिए प्रश्नोत्तरी माध्यम से बच्चों का ज्ञानवर्धन करना आवश्यक है ।
  • वक्तृत्व प्रतियोगिता- 
    बच्चों की प्रतिभा को सामने लाने और उसको निखारने हेतु बच्चों की वक्तृत्व कला को सबके सामने प्रस्तुत करने से उनमें आत्मविकास बढ़ता है, जिससे वे अपने विचारों को रखने में किसी भी तरह की लज्जा महसूस नहीं करते हैं ।
  • कविता वाचन-
    देशप्रेम की भावनाओं से ओतप्रोत कविता सृजन करने और उसके स-स्वर पाठ करने के लिए प्रोत्साहन देने से बच्चों के मौलिक लेखन का विकास होता है । इसके साथ ही प्रतिष्ठित साहित्यकारों की रचनाओं का पाठ भी करवाया  जाएगा ।
  • नाट्य संस्कार – 
    नाटक बाल संस्कार का प्रभावी साधन है । इससे बच्चे ज्ञानात्मक संस्कार से परिचित होते हैं ।
  • लघु – फिल्म – 
    जीवन मूल्यों पर आधारित लघु-फिल्मों के द्वारा बच्चों को संवेदनशील आयु में संस्कारित एवं नैतिक शिक्षा प्रदान करने का प्रभावशाली माध्यम है ।
  • संवाद-सेतु – 
    (गुरु-पालक-बालक संवाद) बाल मनोविज्ञान के आधार पर सरल सहज भाषा में पालक प्रबोधन कार्यशाला का आयोजन 
  • प्रज्ञा संवर्धन – 
    सामाजिक शुचिता से व्यक्तिगत शुचिता, आसन, प्राणायाम आदि के माध्यम से बालकों में प्रज्ञा जागरण एवं विकास पर आधारित पद्धति से बच्चों में संस्कार सृजन ।
  • संगीत संस्कार – 
    संगीत की प्रतिभा वाले छात्रों को प्रशिक्षण ।
  • संस्कार महोत्सव – 
    वार्षिक समारोह के रूप में संस्कार महोत्सव का आयोजन किया जाएगा । इसके माध्यम से जन चेतना का सृजन और संस्कार की महत्ता का प्रसार किया जाएगा ।
  • सेवा संस्कार – 
    वृद्ध सेवा, लैंगिक असमानता, प्राकृतिक आपदा, बाढ़ आपदा, महामारी के लिए कर्तव्य भाव का सृजन करना इसका मुख्य लक्ष्य होगा ।
  • अनुशासन
  • किट बैग
  • सन्दर्भ पुस्तकें
  • बुकलेट/व्रौचर 
  • पाठ्यक्रम निर्माण


सुधाकर पाठक – अध्यक्ष, हिन्दुस्तानी भाषा अकादमी

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